राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में प्रेम प्रसंग के बीच हत्या की एक दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई है. यहां एक शिक्षिका की उसके ही पुराने प्रेमी ने दिनदहाड़े बेरहमी से हत्या कर दी. ये घटना जिले के कलिंजरा कस्बे की है. 36 वर्षीय लीला ताबियार को महिपाल बागोरा ने सड़क के बीच में घेरकर तलवार से कई वार किए.
बीजेपी के पूर्व कोषाध्यक्ष और बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल बीजेपी के 18वें प्रदेश अध्यक्ष होंगे। उन्होंने सिंगल कैंडिडेट के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। उनके नाम का औपचारिक ऐलान आज (2 जुलाई) किया जाएगा। सूत्र बताते हैं कि 61 साल के हेमंत खंडेलवाल को मप्र बीजेपी का अध्यक्ष बनाने की पटकथा लोकसभा चुनाव के बाद ही लिख ली गई थी। दरअसल, केंद्रीय नेतृत्व ने खंडेलवाल को प्रत्याशियों के को-ऑर्डिनेशन की अहम जिम्मेदारी सौंपी थी। इस वजह से लोकसभा चुनाव में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन रहा और बीजेपी क्लीन स्वीप करने में कामयाब रही। साथ ही संघ और सीएम ने भी खंडेलवाल के नाम पर मुहर लगाई थी। वैश्य समुदाय से आने वाले हेमंत खंडेलवाल की पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है। उनके पिता विजय खंडेलवाल बैतूल से 4 बार सांसद रहे हैं। जातिगत और क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर कई नाम प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में शामिल थे। इन सभी को पीछे छोड़ते हुए आखिर हेमंत खंडेलवाल के नाम पर सहमति कैसे बनी? खंडेलवाल के सामने कौन सी चुनौतियां होंगी? पढ़िए रिपोर्ट... धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में भरा नामांकनबीजेपी के प्रदेश चुनाव अधिकारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान मंगलवार शाम 4 बजे भोपाल पहुंचे। इसके बाद प्रदेश कार्यालय में संगठन चुनाव के अधिकारी विवेक शेजवलकर और धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में हेमंत खंडेलवाल ने 4.30 बजे अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। शाम 6.30 बजे तक किसी और उम्मीदवार ने नामांकन दाखिल नहीं किया, जिससे ये तय हो गया कि खंडेलवाल ही बीजेपी के निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष होंगे। आज प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में उनके नाम का औपचारिक ऐलान किया जाएगा। राजेंद्र शुक्ला और नरोत्तम मिश्रा भी थे रेस मेंसूत्रों का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष की रेस में उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला और पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी थे। मिश्रा ने दिल्ली में लॉबिंग की थी। जबकि शुक्ला के लिए प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं के समर्थन की कोशिश हुई, लेकिन हेमंत खंडेलवाल के नाम पर सहमति बनी। लोकसभा चुनाव के दौरान समन्वय की जिम्मेदारीलोकसभा 2024 चुनाव के दौरान हेमंत खंडेलवाल को राष्ट्रीय नेतृत्व ने संगठन और उम्मीदवारों के बीच को-ऑर्डिनेशन की जिम्मेदारी सौंपी थी। इस काम को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। जब लोकसभा चुनाव खत्म हो गए और प्रदेश अध्यक्ष के चयन की कवायद शुरू हुई तो कई नाम सामने आए। राजनीतिक और जातिगत समीकरणों को देखते हुए कई नेताओं की दावेदारी थी, लेकिन खंडेलवाल ने बाजी मार ली। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह ने संगठन को प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव पर आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश सोनी और सीएम डॉ. मोहन यादव ने भी सहमति जताई थी। शिवराज, तोमर से भी खंडेलवाल के अच्छे रिश्तेखंडेलवाल के शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर से संबंध अच्छे हैं। उनके पिता और बैतूल से चार बार के सांसद विजय खंडेलवाल का 2007 में निधन हो गया था। उस समय प्रदेश अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे। बैतूल सीट पर हुए उपचुनाव में शिवराज और तोमर की सहमति से खंडेलवाल को टिकट मिला और वे सांसद बने थे। हालांकि, 2009 के लोकसभा चुनाव में परिसीमन के बाद ये सीट रिजर्व हो गई। इसके बाद उन्हें संगठन की कई बड़ी जिम्मेदारियां दी गई। मप्र के कई जिलों में बीजेपी के नए कार्यालयों को बनाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। अब जानिए क्या रहेंगी खंडेलवाल के सामने चुनौतियां? 1. नगरीय निकाय और पंचायत के चुनावसाल 2027 में मप्र में नगरीय निकाय और पंचायत के चुनाव होने हैं। इस बार सरकार ने तय किया है कि पंचायत के चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली की बजाय प्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्टी सिंबल पर कराए जाए। इसी तरह नगर पालिका और नगर परिषद अध्यक्षों के चुनाव भी पार्टी सिंबल पर होंगे। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर हेमंत खंडेलवाल के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। 2. विधानसभा चुनाव की रणनीति बनानानगरीय निकाय चुनाव के बाद 2028 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। हालांकि हेमंत खंडेलवाल का कार्यकाल जुलाई 2028 तक रहेगा, मगर चुनाव के लिए रणनीति बनाने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर रहेगी। साल 2023 के चुनाव में बीजेपी ने 165 सीटें जीतकर सरकार बनाई है। खंडेलवाल के सामने जीत के इस मार्जिन को बरकरार रखना चुनौती होगी। 3. निगम-मंडल और आयोग में नियुक्तियांमोहन सरकार ने पिछली सरकार में निगम मंडल और आयोग में हुई नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। खंडेलवाल के अध्यक्ष के बाद प्रदेश के निगम, मंडलों, बोर्ड, प्राधिकरणों में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया तेज होगी। पहले की तुलना में पार्टी और सरकार के बीच समन्वय बेहतर होगा। साथ ही जिला कार्यकारिणी और कोर कमेटियों के गठन में भी तेजी आएगी। दूसरी बार विधानसभा में सीएम और अध्यक्ष साथ होंगेहेमंत खंडेलवाल बैतूल से विधायक हैं। ये दूसरी बार होगा जब बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री एक साथ विधानसभा में नजर आएंगे। साल 2006 से 2010 के बीच नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष रहे तब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे। हालांकि, ये जुगलबंदी केवल 9 महीने तक ही रही। तोमर ने 2008 का चुनाव नहीं लड़ा और 2009 में राज्यसभा के लिए चुने गए। इससे पहले और बाद में जितने प्रदेशाध्यक्ष रहे। उनमें से कोई भी विधानसभा का सदस्य नहीं रहा। हेमंत खंडेलवाल 2023 में दूसरी बार विधायक बने हैं। प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल तीन साल का होता है। सीएम डॉ. मोहन यादव और खंडेलवाल 2028 तक विधानसभा में एक साथ नजर आएंगे। तोमर के बाद खंडेलवाल भी तोड़ेंगे परंपराबीजेपी की एक परंपरा रही है कि प्रदेश अध्यक्ष राज्यसभा या लोकसभा का सदस्य होता है। साल 1990 से लखीराम अग्रवाल से ये परंपरा शुरू हुई थी। वे उस समय मप्र राज्यसभा के सदस्य थे। इसके बाद लक्ष्मीनारायण पांडे, नंदकुमार साय, विक्रम वर्मा, कैलाश जोशी, शिवराज सिंह चौहान, सत्यनारायण जटिया तक ये परंपरा कायम रही। 2006 में जब नरेंद्र सिंह तोमर अध्यक्ष बने तब वे मप्र विधानसभा के सदस्य थे। हालांकि, दो साल बाद 2009 में वे राज्यसभा के लिए चुने गए थे। दूसरी बार 2012 में जब वे अध्यक्ष बने तब लोकसभा सांसद थे। हेमंत खंडेलवाल दूसरे प्रदेश अध्यक्ष होंगे जो सांसद न होकर राज्य विधानसभा के सदस्य हैं। बीस साल बाद मध्य क्षेत्र से प्रदेश अध्यक्ष मिलामप्र में मालवा क्षेत्र से सबसे ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष बने हैं। 1980 में जब पार्टी की स्थापना हुई तब मंदसौर से आने वाले सुंदरलाल पटवा पहले अध्यक्ष बने इसके बाद देवास जिले से आने वाले कैलाश जोशी ने दूसरे अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की बागडोर संभाली। दोनों दो-दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। इसके बाद मालवा से तीन और प्रदेश अध्यक्ष रहे जिसमें रतलाम के डॉ. लक्ष्मीनारायण पांडे, धार के विक्रम वर्मा और उज्जैन के सत्यनारायण जटिया का नाम शामिल है। मालवा के बाद ग्वालियर-चंबल अंचल को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का मौका मिला है। विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर दो बार अध्यक्ष रहे और निवर्तमान अध्यक्ष वीडी शर्मा भी चंबल इलाके से आते हैं। मध्य क्षेत्र से पहली बार 2005 में शिवराज सिंह चौहान प्रदेश अध्यक्ष बने थे। उस समय वे विदिशा सांसद थे। हेमंत खंडेलवाल बैतूल के रहने वाले हैं, यानी मध्य क्षेत्र से बीजेपी को दूसरा प्रदेश अध्यक्ष मिलेगा। खास बात ये है कि विंध्य और बुंदेलखंड ये दो ऐसे रीजन हैं, जहां से आजतक कोई प्रदेश अध्यक्ष नहीं रहा है। OBC सीएम और सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष का फॉर्मूलामध्यप्रदेश में बीजेपी ने 2003 के विधानसभा चुनाव में 10 सालों की कांग्रेस सरकार को हटाकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। तब जिस फॉर्मूले का इस्तेमाल किया था, उसने पार्टी को मध्यप्रदेश में बेहद मजबूत स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। यह फॉर्मूला था-ओबीसी मुख्यमंत्री और सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष का। बीजेपी ने 2003 में कद्दावर नेता उमा भारती को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था जो ओबीसी वर्ग से आती हैं। उमा भारती के बाद बाबूलाल गौर, शिवराज सिंह चौहान और अब मोहन यादव एमपी के मुख्यमंत्री बने और यह चारों ओबीसी वर्ग से आते हैं। वहीं, इन सभी मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में बीजेपी के संगठन की जिम्मेदारी सवर्ण वर्ग से आने वाले नेताओं ने संभाली। उमा भारती के समय कैलाश जोशी प्रदेश अध्यक्ष थे। इसके बाद नरेंद्र सिंह तोमर, प्रभात झा, नंदकुमार सिंह चौहान, राकेश सिंह और वीडी शर्मा ने ये जिम्मेदारी संभाली जो सवर्ण वर्ग से आते हैं। अब हेमंत खंडेलवाल भी इसी फार्मूले में फिट हैं। वीडी शर्मा के लिए अब दो संभावनाएं 1.राष्ट्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारीवीडी शर्मा ने फरवरी 2020 में प्रदेश अध्यक्ष का पदभार संभाला था। उनका तीन साल का कार्यकाल फरवरी 2023 में पूरा हो गया था। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण उन्हें कार्यकाल विस्तार दिया गया था। सूत्रों का कहना है कि वीडी शर्मा के नेतृत्व में बीजेपी ने न केवल विधानसभा चुनाव में 163 सीटें जीतीं, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी 29 सीटें जीतने में कामयाब रही। ऐसे में उन्हें केंद्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। उन्हें राष्ट
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