लखनऊ नगर निगम जोन-1 में तैनात बाबू मनोज कुमार आनंद का रिश्वत मांगने का वीडियो सामने आया था। मामले में नगर आयुक्त गौरव कुमार ने कार्रवाई करते हुए मनोज आनंद को मुख्यालय से अटैच कर दिया है। इस दौरान विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी गई है। नगर आयुक्त ने बताया कि शिकायत के बाद यह एक्शन लिया गया है। वहीं, जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के नाम पर भी एक महिला से रुपए मांगने के आरोप का मामला सामने आया है, जिसमें अभी जांच की जा रही। आरोप म्यूटेशन की फाइल मांगे 50 हजार आरोप था कि म्यूटेशन की फाइल तेजी से निपटाने के बदले 50 हजार रुपए की मांग की थी। लाल कुआं वार्ड के रामपाल अधिकारी से रुपए मांगने का आरोप है। वीडियो पर नगर निगम प्रशासन हरकत में आया। चीफ टैक्स एसेसमेंट ऑफिसर (CTAO) अशोक सिंह ने जोनल अफसर ओपी सिंह से तत्काल रिपोर्ट मांगी। जांच में बाबू प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है। इसके बाद CTAO ने नगर आयुक्त को कार्रवाई की संस्तुति भेज दी थी। आवेदक से 40 हजार में तय हुई रकम रामपाल अधिकारी मार्ग निवासी ऊषा दीक्षित और आशा दीक्षित के भवन का म्युटेशन प्रभाकर त्रिपाठी के नाम पर होना था। इसके लिए 19 जून 2025 को जोन-1 कार्यालय में आवेदन किया गया था। म्युटेशन की फाइल बाबू मनोज आनंद को सौंपी गई। आरोप है कि बाबू ने 15 जुलाई को आवेदक को बुलाया और काम जल्दी कराने के बदले 50 हजार रुपए की मांग की। बातचीत में सौदा 40 हजार रुपए में तय हुआ। वीडियो में बाबू यह कहते सुना गया कि, "भाई, रकम ऊपर तक जाती है, मैं अकेले नहीं रखता।" आरोप है कि 10 हजार रुपए की पेशगी अकेले नहीं रखता।" आरोप है कि 10 हजार रुपए की पेशगी भी दी गई, हालांकि यह हिस्सा वीडियो में स्पष्ट नहीं है। बाबू ने कहा था - ब्लैकमेल करने की कोशिश मनोज आनंद ने खुद पर लगे आरोपों को गलत बताया है। उनका कहना है कि उन्हें बदनाम करने और ब्लैकमेल करने की मंशा से यह वीडियो बनाया गया। उन्होंने कहा कि उनके पास भी एक ऑडियो रिकॉर्डिंग है, जिसमें असलियत सामने आ जाएगी। बाबू ने जोनल अफसर को अपना लिखित पक्ष भी सौंप दिया है।
हमारा शहर जिला बन गया था। दशकों से यह राजनीतिक मांग शहर के बाशिंदों द्वारा उठाई जा रही थी कि शहर को जिला बनाया जाना चाहिए। चुनावी दौर में रेबड़ियां बांटने की आंधी ऐसी चली कि जिले वाली रेबड़ी उड़कर हमारे यहाँ भी गिर गई। लोग सुबह उठे, अख़बार खोला तो पाया कि– "बधाई हो! आपके शहर को जिला हुआ है।" बधाइयां गाई जाने लगीं। लेकिन शहर वालों को यह नहीं पता था कि जिला क्या होता है, कैसा दिखता है। ललना, को देखने भीड़ उमड़ पडी, पूछते रहे, "यह कैसा है ललना... स्वस्थ तो है न?" अब जब जिला बन गया है, तो इसके लालन-पालन का जिम्मा सरकार ने लिया है या नहीं? आश्वासन मिला कि चिंता मत करो, जिला बन गया है, अभी बच्चा है, अबोध है। धीरे-धीरे बड़ा होगा। इसी बीच चुनाव हुए, और जिन्होंने इस बच्चे की डिलीवरी करवाई थी, उन्हें इस बच्चे के लालन-पालन का हक नहीं मिला। माता-पिता बदले, तो बच्चा अनाथ सा महसूस करने लगा। इसे भी पढ़ें: जांच की जांच (व्यंग्य)शहर में एक आशंका की लहर उठी कि अब इस बच्चे का क्या होगा? लेकिन इसी बीच शहर में राहत की खबर आई कि बच्चा स्वस्थ है, ज़िंदा है और वह शहर में आई हुई नयी चमचमाती सरकारी इनोवा में घूम रहा है। बस फिर क्या, लोग सड़कों पर निकल आए, इन चमचमाती सरकारी इनोवा गाड़ियों के स्वागत के लिए। यह जिले का प्रतीक बन गया। जब इनोवा दौड़ती तो ऐसा लगता कि जिला अपनी विकास की रफ्तार से दौड़ रहा है। एक आशा का धुआं छोड़ती इनोवा। हम उसी में खुश थे, और क्या चाहिए। हमारा शहर बहुत आशावादी है। उसे मालूम है कि इनोवा है तो फिर इनमें बैठने वाले सरकारी अफसर भी होंगे। फिर दौरे होंगे, मीटिंग होंगी, योजनाएं बनेंगी, कैंप लगेंगे, राहत शिविर लगेंगे, पखवाड़ों का आयोजन होगा, औचक निरीक्षण होंगे, सेमिनार होंगे, बड़े अधिकारियों के दौरे होंगे। इन्हीं के जरिए सरकारी रेबड़ियां बनती रहेंगी, सर्वेक्षण होंगे, आयोग बनेंगे, चिंता शिविर लगेंगे, जन सुनवाई होगी। फिर शहर की समस्याएं चुटकी में हल हो जाएंगी। इनोवा घूम रही है... सरकारी इनोवा। बस जिला बना रहना चाहिए। क्या कहा, 5 साल तक जिले का बजट ही अलॉट नहीं होगा? तो क्या! सरकार के पास बजट नहीं है तो कोई बात नहीं, हमें क्या जल्दी है। बस अदना सा बजट चाहिए, इतना कि यह सरकारी इनोवा घूमती रहे, उसके पेट्रोल का खर्चा दे दे सरकार l उस पर सरकारी पट्टिका लगी रहे जिसमें लिखा हो जिला......। अब जिला बना है, इसका पता इसी से चलता है कि सरकार खटारा जीपों की जगह इनोवा आ गई। आप देखें, चमचमाती इनोवा सड़कों पर दौड़ रही है। सरकारी इनोवा के शॉकर भी गज़ब के हैं।टूटी सड़कों पर भी सरपट दौडती है। मजाल है कि अंदर बैठे अफसर को एक झटका भी लगे। जब ये इनोवा गड्ढों पर से गुजरती है, तो शहर के बाशिंदे कीचड़ पोंछते हुए चहक उठते हैं, "जिला बन गया हमारा शहर।" इनोवा हर जगह दिख जाती है... दौरे पर, औचक निरीक्षण पर, मीटिंग में, डाक बंगले में, मंत्रियों की रैली में, ट्रैफिक में, अफसर के बंगले पर... जहाँ उसका मन करे। अंदर साहब बैठे हैं या नहीं, इससे क्या मतलब। बस इनोवा रहनी चाहिए। मेरा शहर सीमित महत्वाकांक्षाओं का शहर है। अब सरकारी इनोवा है न, अब यही हमारे सपने हैं, यही हमारा ओढ़ना, यही हमारा बिछौना, यही हमारा लंच-ब्रेकफास्ट सब है। अगर ज्यादा भावुक हो गए तो इसके आगे अगरबत्ती लगाकर गा सकते हैं– "त्वमेव माता च पिता त्वमेव।" अब हम भी कह सकते हैं कि हम हैं जिले के वासी। समस्याएं? अरे, समस्या खत्म समझो... जिला बना है अभी। जहाँ-जहाँ इनोवा घूमेगी, समस्याएं ओंधे मुंह गिरी मिलेंगी। काहे को टेंशन लेते हो? इनोवा में चढ़ते और उतरते अधिकारी, उसके पीछे दौड़ते मातहत, एक विशिष्ट पहचान बना रहे हैं मेरे शहर को। इनोवा के ऊपर लगी हरी-लाल लपझप करती बत्ती और सायरन की आवाज डर और कौतूहल का अजीब सा संगम पैदा कर रहे हैं। मेरा शहर करवट ले रहा है। कुछ आशा की किरणें जग रही हैं। लेकिन ये क्या! अभी दो-चार कदम चले भी नहीं थे। सरकारी इनोवा ने पहला गियर डालकर चलना शुरू किया ही था कि ऊपर से सरकारी फरमान आ गया। उन्हें वापस बुलाया जा रहा है। एकदम हड़कंप मच गया कि इनोवा वापस मंगा ली गई! ऐसा लगा जैसे बच्चे से उसका झुनझुना छीन लिया हो। हे भगवान! अब क्या होगा हमारे शहर का? ऐसा लग रहा है जैसे शहर की मांग उजड़ गई। जिन्होंने इस बच्चे को डिलीवर करवाया था, उन्हें यह नागवार गुज़रा। इनोवा वापस आनी चाहिए... इस शहर को इनोवा से वंचित नहीं किया जा सकता। हमने इस बच्चे को इनोवा गाड़ी के रूप में एक दूध की बोतल पकड़ाई थी कि बच्चा निप्पल को मुंह में लगाए चुप रहे, रोए नहीं। और अब तुम हमसे ये बोतल छीनने की बात करते हो!क्या कहा..? बोतल खाली है, उसमें दूध नहीं है..,तो क्या..! खाली बोतल हाथ में पकड़कर बच्चा कम से कम चुप तो है, मुस्करा रहा है। खुशखबरी ये है कि शहर में धरने और अनशन होने लगे हैं। संस्थाओं, व्यापारियों, कार्यकर्ताओं, दोस्तों, दुश्मनों, सभी को साम-दाम-दंड-भेद से यह समझाया जा रहा है कि उनसे वह छीना जा रहा है जिसके वे हकदार हैं। इनोवा वापस आनी चाहिए, चाहे इसके लिए हमें अपनी जान भी देनी पड़े। चाहे उसमें अफसर बैठे हों या नहीं, खाली इनोवा सड़कों पर हिचकोले खाए, लेकिन इनोवा वापस आनी चाहिए। हमारा बच्चा रो रहा है... उसकी बोतल छीन ली गई है... हम यह कैसे बर्दाश्त करेंगे? हमने भागते भूत की लंगोटी सही, लेकिन लंगोटी हम लेकर रहेंगे।- डॉ. मुकेश असीमित
अगर आप पहले प्रेग्नेंट हो चुकी हैं, लेकिन अब दोबारा प्रेग्नेंट होना मुश्किल हो रहा है, तो हो सकता है कि आप सेकेंड्री इनफर्टिलिटी फेस कर रही हों. ये ज्यादातर लोगों की सोच से कहीं ज्यादा कॉमन है. विशेषज्ञों की मानें, तो सभी इनफर्टिलिटी केसेस में लगभग 50% सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के कारण होते हैं. दूसरी बार फर्टिलिटी को इफेक्ट करने वाले कई फैक्टर्स हो सकते हैं, जिनमें ब्लॉक्ड फैलोपियन ट्यूब्स, स्पर्म काउंट जैसी मेल इनफर्टिलिटी प्रॉब्लम्स या फीमेल इनफर्टिलिटी रिस्क फैक्टर्स में चेंज शामिल हैं. सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के एक्चुअल कारणों को समझने से राइट फर्टिलिटी ट्रीटमेंट फाइंड करने और जरूरी सपोर्ट पाने में बहुत हेल्प मिल सकती है. आइए जानें कि ऐसा क्यों होता है और क्या हैं कारण.क्या है सेकेंड्री इनफर्टिलिटी?सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का मतलब है पहले नॉर्मल डिलीवरी के बाद प्रेग्नेंट होने या बेबी को कंसीव करने में डिफिकल्टी. ये पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज, स्कार टिश या रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स को इफेक्ट करने वाले हार्मोनल इम्बैलेंस के कारण हो सकता है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि वर्ल्डवाइड लगभग 10-15% कपल्स इनफर्टिलिटी से इफेक्टेड हैं. सेकेंड्री इनफर्टिलिटी कई फैक्टर्स पर डिपेंड करती है, सिर्फ उम्र पर नहीं. ये हैं सेकेंड्री इनफर्टिलिटी के मुख्य कारणउम्र से रिलेटेड फर्टिलिटी डिक्लाइन: जैसे-जैसे फीमेल्स की ऐज बढ़ती है, उनके एग्स की क्वालिटी तेजी से गिरने लगती है, खासकर 35 की उम्र के बाद. अमेरिकन कॉलेज ऑफ ऑब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स की मानें तो, 32 से 37 साल की ऐज के बीच एग्स का नंबर लगभग 50% कम हो जाता है. हार्मोन लेवल्स और ओवेरियन डिस्फंक्शन भी आपकी नेचुरली कंसीव करने की एबिलिटी को और ज़्यादा इफेक्ट कर सकते हैं.ब्लॉक्ड फैलोपियन ट्यूब्स: पेल्विक इन्फेक्शन या ट्यूबल लिगेशन सर्जरी के कारण बनने वाले स्कार टिशू, फैलोपियन ट्यूब्स को ब्लॉक कर सकते हैं. सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शंस कई फीमेल्स में सेकेंड्री इनफर्टिलिटी का एक हिडन रीजन होते हैं. यूटराइन फाइब्रॉइड्स और यूटराइन लाइनिंग प्रॉब्लम्स भी फर्टिलाइज्ड एग को इंप्लांट होने से रोक सकती हैं.ओव्यूलेशन डिसऑर्डर्स: हार्मोनल डिसऑर्डर्स और रिप्रोडक्टिव एंडोक्राइनोलॉजी से जुड़ी प्रॉब्लम्स ओव्यूलेशन को पूरी तरह से स्टॉप कर सकती हैं.क्लोमिड जैसी फर्टिलिटी मेडिसिन अक्सर सेफली ओव्यूलेशन को इंड्यूस करने के लिए दी जाती हैं. ओवरीजमें स्ट्रक्चरल प्रॉब्लम्स को ठीक करने से कभी-कभी इस सिचुएशन को रिवर्स किया जा सकता है.यूटराइन या एंडोमेट्रियल इश्यूज: यूटराइन लाइनिंग की पुअर हेल्थ इंप्लांटेशन रेट को इफेक्ट करती है.एंडोमेट्रियोसिस के कारण हेल्दी एग्स स्कार टिशू में ट्रैप हो सकते हैं. मेडिकल ट्रीटमेंट्स से एंडोमेट्रियोसिस को अर्ली स्टेज में ट्रीट करने से सफलता का मौका अधिक होता हैं.मेल फैक्टर्स जैसे एनलार्ज्ड प्रोस्टेट: स्पर्म प्रोडक्शन में कमी या पुअर स्पर्म क्वालिटी (मेल फ़र्टिलिटी को इफेक्ट कर सकती है। एनलार्ज्ड प्रोस्टेट या टेस्टिकुलर वैरिकोसेल स्पर्म काउंट और स्पर्म को इफेक्टिवली होल्ड करने की एबिलिटी को इफेक्ट करता है. ब्लड टेस्ट और सीमन एनालिसिस से इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम्स को एक्युरेटली डायग्नोज किया जा सकता है.लाइफस्टाइल फैक्टर्स और एक्सेसिव वेट गेन: बहुत ज्यादा अल्कोहल, ओबेसिटी और एन्वॉयरमेंटल टॉक्सिन्स हार्मोनल बैलेंस को डिस्टर्ब कर सकते हैं. अगर वेट रिलेटेड प्रॉब्लम्स को मैनेज नहीं किया जाता, तो रिप्रोडक्टिव प्रोसेस ठीक से काम नहीं कर सकती हैं. परमानेंट वेट लॉस से हेल्दी प्रेग्नेंसी के मौके बढ़ जाते हैं.मेडिकल कंडीशंस: डायबिटीज या थायराइड प्रॉब्लम्स की मेडिकल हिस्ट्री साइलेंट फर्टिलिटी रिस्क क्रिएट करती है. फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से रेगुलर चेकअप कराने से इन्हें जल्दी डिटेक्ट करने में हेल्प मिलती है.इनफर्टाइल कपल्स में अक्सर एक से ज्यादा फैक्टर्स इन्वॉल्व होते हैं.स्ट्रेस और इमोशनल हेल्थ: इमोशनल स्ट्रेस रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स को इफेक्ट करता है. इनफर्टिलिटी ओवरऑल मेंटल हेल्थ पर भी बहुत डिपेंड करती है. शांत और सपोर्टेड रहने से जितना ज्यादातर लोगों को लगता है, उससे कहीं ज्यादा फर्क पड़ता है.ये भी पढ़ें: कैसे खत्म हो जाती है घुटनों की ग्रीस? जानें इससे बचने के लिए क्या करना चाहिएDisclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
Indian News 20 द्वारा इस दिन पोस्ट की गई रविवार, 13 दिसंबर 2020
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