बिहार लोक सेवा आयोग यानी BPSC ने 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (CCE) के मेन्स परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड जारी कर दिए हैं. उम्मीदवार आधिकारिक वेबसाइट bpsc.bih.nic.in पर जाकर अपना एडमिट कार्ड डाउनलोड कर सकते हैं. परीक्षा 25 से 30 अप्रैल के बीच आयोजित की जाएगी.
‘सच्ची शिक्षा का मतलब है दूसरों को सशक्त बनाना और दुनिया को उससे थोड़ा बेहतर बनाकर छोड़ना.....’ ज्योतिराव फुले ने न सिर्फ ये कहा बल्कि जीवनभर इसी सिद्धांत पर चलते भी रहे। उन्होंने लड़कियों और दलितों की खराब स्थिती देखी। उस समय दलित सड़क पर चलते हुए पीठ पर झाड़ू बांधकर चला करते थे ताकी जिस सड़क पर वो चले उसे साफ करते हुए चल सकें। विधवा महिलाओं को जीवन के कोई भी सुख भोगने की इजाजत नहीं थी। ज्योतिबा ने जब ये सब देखा तो वो ठान लिया कि इन सबका जीवन बेहतर करना है। इसके लिए उन्होंने शिक्षा को हथियार बनाया। ज्योतिराव उर्फ ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र में हुआ था। 1888 से उन्हें महात्मा भी कहा जाने लगा। वो एक सोशल एक्टिविस्ट, बिजनेसमैन और सोशल रिफोर्मर रहे हैं। ज्योतिबा और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले देश में महिलाओं और दलितों की शिक्षा के लिए काम करने वाले सबसे शुरुआती लोगों में रहे हैं। पत्नी को पढ़ाने से की शुरुआत ज्योतिबा की शादी सावित्रीबाई फुले से हुई। लड़कियों के लिए शिक्षा की शुरुआत ज्योतिबा ने अपने ही घर से की। उन्होंने सबसे पहले अपनी पत्नी को पढ़ाना शुरू किया। ज्योतिबा जब खेतों में काम करते तो दोपहर के समय सावित्री उनके लिए खाना लेकर आती थीं। इसी दौरान ज्योतिबा ने उन्हें पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद दोनों ने मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। सावित्रीबाई के अलावा ज्योतिबा ने अपनी बहन सगुनाबाई सिरसागर को मराठी लिखनी सिखाई। ज्योतिबा ने देखा कि पति के गुजर जाने के बाद विधवा महिलाओं के बाल काट दिए जाते थे और वो पूरी तरह से दूसरों पर आश्रित हो जाती थीं। इसके अलावा दलित महिलाएं भी समाज में शोषित हो रहीं थी। ये देख ज्योतिबा को लगा कि महिलाओं को शिक्षित करके ही उनका जीवन बेहतर हो सकता है। पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला ज्योतिबा ने पत्नी सावित्रीबाई के साथ मिलकर पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। लेकिन पुणे के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। एक स्कूल खोलने के लिए दोनों को उनके परिवार और कम्यूनिटी ने बहिष्कार कर दिया। इस दौरान ज्योतिबा के दोस्त उस्मान शेख ने उन्हें अपने घर में रखा और स्कूल चलाने में भी मदद की। इसके बाद दोनों ने मिलकर दो स्कूल और खोले। 1852 तक दोनों तीन स्कूल खोल चुके थे जिनमें 273 लड़कियों पढ़ाई कर रही थीं। फुले फिल्म को लेकर विवाद, रिलीज टली ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर ‘फुले’ नाम से एक फिल्म बॉलीवुड में बन चुकी है। इसमें प्रतीक गांधी ज्योतिबा फुले और पत्रलेखा सावित्रीबाई फुले का किरदार निभा रहे हैं। फिल्म 11 अप्रैल को रिलीज होनी थी। लेकिन बढ़ते विवाद के चलते इसकी रिलीज डेट को फिलहाल टाल दिया गया है। दरअसल, ब्राह्मण समाज के कुछ लोगों ने फिल्म को लेकर सवाल उठाए कि फिल्म ब्राह्मणों की छवि खराब कर रही है। इसलिए फिल्म रिलीज नहीं की जानी चाहिए। इसे लेकर कई संगठन विरोध प्रदर्शन भी कर चुके हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन यानी CBFC ने कहा है कि फिल्म से आपत्तिजनक डायलॉग्स निकालकर ही इसे रिलीज करना चाहिए। टॉयलेट की कमी से स्कूल छोड़ रही लड़कियां पिछले सालों के मुकाबले भारत में महिलाओं की शिक्षा की स्थिति बेहतर हुई है। साल 2021 में भारत में फीमेल लिटरेसी 71.5% थी। ग्रामीण इलाकों में फीमेल लिटरेसी 66% पाई गई। इसके अलावा हायर एजुकेशन में महिलाओं का एनरोल्मेंट बढ़ा है। 2021-22 में हायर एजुकेशन में 2.07 करोड़ महिला कैंडिडेट्स थीं। ये आंकड़ा 2014-15 के मुकाबले 32% ज्यादा था। हालांकि, अभी भी कुछ चैलेंजेस हैं जो महिलाओं की शिक्षा के लिए रुकावट की तरह काम करते हैं। स्कूलों में साफ टॉयलेट न होना इसमें एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से किशोरावस्था में लड़कियां स्कूल आना बंद कर देती हैं। इसके अलावा घर का काम, शादी और छेड़छाड़ जैसे कारणों की वजह से भी लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती। कॉलेज में लड़कियों को रिजर्वेशन, स्कॉलरशिप महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत में उन्हें कई तरह के एडवांटेजेस दिए जाते हैं। कई सेंट्रल और स्टेट यूनिवर्सिटीज अपने कॉलेजेस में कुछ पर्सेंटेज ऑफ सीट्स लड़कियों के लिए आरक्षित रखती हैं। साल 2018 में IITs में 20% सीट्स महिला कैंडिडेट्स के लिए रिजर्व की गईं। ये सुपरन्यूमरेरी सीट्स हैं यानी इस रिजर्वेशन से जनरल सीटों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा कई NITs में भी इस तरह का प्रावधान है। कई NITs महिला कैंडिडेट्स को स्कॉलरशिप्स ऑफर करते हैं। यूनिवर्सिटीज में PhD एडमिशन्स के दौरान कट-ऑफ मार्क्स में लड़कियों को छूट मिलती है। इसके अलावा सरकार की ओर से लड़कियों की शिक्षा के लिए कई फाइनेंशियल एड स्कीम्स चलती हैं... ऐसी ही एजुकेशन की और खबरें पढ़ें... 1. दलित छात्रा को पीरियड्स के कारण क्लास से बाहर बैठाया:सीढ़ियों पर बैठकर एग्जाम देती रही 8वीं की छात्रा, वीडियो वायरल होने पर प्रिंसिपल सस्पेंड तमिलनाडु के कोयंबटूर में एक 8वीं क्लास की दलित बच्ची को अलग-थलग बैठाकर एग्जाम दिलाने का मामला सामने आया है। पूरी खबर पढ़ें...
कभी-कभी कुछ लोगों के मुंह से सुनने में आता है कि जीवन व्यर्थ गंवा दिया। तो जीवन को गंवाया जा सकता है, इसका यह मतलब हुआ कि कमाया भी जा सकता है। क्योंकि ऐसा कहते हैं कि जीवन वो जगह है, जहां हम अपनी मृत्यु कमाते हैं। तो मृत्यु को कमाया कैसे जाता है? उसका नाम है- स्वास्थ्य और होश। हमारे यहां आशीर्वाद दिया जाता है- दीर्घायु हों। इसका मतलब है कि आपका मानवकाल बढ़ा रहे। आपकी मृत्यु जल्दी न हो, जीवन को जमकर देखें। लेकिन अधिक जीकर करेंगे क्या? बिस्तर पर पड़े रहें, कोई सेवा करे, शरीर निष्क्रिय हो जाए। तो जीवन कमाना हो, मृत्यु कमानी हो तो सीखें हनुमान जी से। आज हनुमान जयंती है। हनुमान चालीसा में लिखा है- अंतकाल रघुवरपुर जाई। और एक जगह लिखा है- नासे रोग हरे सब पीरा। इसका सीधा अर्थ है कि हनुमान जी से जुड़िए। हनुमान चालीसा के माध्यम से समझिए कि हनुमान जयंती हमको संदेश दे रही है जीवन को कमाना या गंवाना हमारे हाथ में है।
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