UP Board Result 2025 LIVE Updates: उत्तर प्रदेश बोर्ड 10वीं और 12वीं का रिजल्ट तैयार हो गया है. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UPMSP) की तरफ से हाईस्कूल और इंटर का रिजल्ट जारी होने वाला है. ऐसे में छात्र अपनी मार्कशीट यहां सबसे पहले चेक कर सकते हैं. UPMSP UP Board 10th 12th Result 2025 पर लेटेस्ट अपडेट सबसे पहले यहां मिलेगा.The post UP Board Result 2025 LIVE Update: यूपी बोर्ड 10वीं 12वीं की मार्कशीट अपलोड, थोड़ी देर में आएगा रिजल्ट appeared first on Prabhat Khabar.
राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा कृषि अधिकारी परीक्षा 2024 (कृषि विभाग) का आयोजन 20 अप्रैल को अजमेर में किया जाएगा। एडमिट कार्ड अपलोड कर दिए गए है। आयोग द्वारा प्रातः 11 से दोपहर 1ः30 बजे तक एक ही पारी में इस परीक्षा का आयोजन अजमेर जिला मुख्यालय पर किया जाएगा। आयोग सचिव रामनिवास मेहता ने बताया- प्रवेश-पत्र आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध एडमिट कार्ड लिंक के माध्यम से डाउनलोड किए जा सकेंगे। इसके अतिरिक्त एसएसओ पोर्टल पर लॉगिन कर सिटीजन ऐप्स में उपलब्ध रिक्रूटमेंट पोर्टल लिंक से भी प्रवेश-पत्रों को डाउनलोड किया जा सकता है। परीक्षा में ओएमआर उत्तर पत्रक के पांचवे विकल्प को भरने के लिए 10 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाएगा। इस संबंध में विस्तृत सूचना आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है। एक घंटे पहले मिलेगी एंट्री फोटो युक्त पहचान जरूरी
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संसद से पारित हिन्दू कोड बिल को स्वीकृति देने से इंकार कर दिया था। प्रधानमंत्री नेहरू ने कानूनी राय के लिए मामले को अटॉर्नी जनरल सीतलवाड़ के पास भेजा। असहमत होने के बावजूद प्रसाद ने अटॉर्नी जनरल की राय के अनुसार बिल को मंजूरी दे दी। तब, संविधान सभा में कानून मंत्री डॉ. आम्बेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता इसका संचालन करने वाले लोगों के आचरण और विवेकपूर्ण बर्ताव पर निर्भर रहेगी। लेकिन आज राज्यों और केंद्र की सरकारों के कामकाज में चुनावी समीकरण, धनकुबेरों के संरक्षण और हेडलाइन मैनेजमेंट का वर्चस्व बढ़ रहा है। तमिलनाडु चुनावों के पहले दक्षिणी राज्यों में परिसीमन, भाषा, आरक्षण और जाति सर्वेक्षण के मुद्दों की गूंज है। जबकि बंगाल के चुनावों के पहले वक्फ, रोहिंग्या और एनआरसी के मुद्दों को धार दी जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों ने जिन बिलों पर अड़ंगेबाजी की है, वे जनकल्याण के बजाय नियुक्तियों पर सियासी आधिपत्य से जुड़े हैं। विधेयकों को राज्यपाल से समयबद्ध मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जुड़े 4 आयामों पर समझ जरूरी है : 1. सरकार : सरकारिया और पुंछी आयोग ने राज्यपाल पद के दुरुपयोग को रोकने के लिए अनेक सुझाव दिए, जिन्हें पिछली सरकारों ने लागू नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ है कि विपक्ष शासित राज्यों में ही राज्यपाल की शक्तियों का दुरुपयोग होता है। पार्टी और सरकार का फर्क तो इंदिरा गांधी के समय से ही खत्म होने लगा था। एकता-अखंडता के लिहाज से ‘एक देश एक कानून’ का नारा अच्छा है। लेकिन डबल इंजन सरकार के बढ़ते चलन से विपक्ष शासित राज्यों में बेचैनी है। केंद्र-राज्य सम्बंधों पर करुणानिधि ने कमेटी बनाई थी। उसी तर्ज पर अब स्टालिन सरकार ने पूर्व जज की अध्यक्षता में कमेटी के गठन का ऐलान किया है। अनेक दशक बाद भी संविधान पर सियासी हितों को वरीयता लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है। 2. राज्यपाल : फैसले से साफ है कि विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपाल, सलाहकार के बजाय बाधा डालने वाली मशीनरी के तौर पर काम कर रहे हैं। फैसले में संविधान और कानून के साथ गृह मंत्रालय के 9 साल पुराने आदेश का जिक्र है। उसके अनुसार निर्वाचित सरकार का सम्मान करते हुए विधानसभा से पारित बिलों को तीन महीने में राज्यपालों को मंजूरी देनी चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 141 के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले देश के सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं। इसलिए इस फैसले की व्यवस्था को सबसे पहले अदालतों में लागू करने की जरुरत है, जिससे पीड़ित लोगों को समयबद्ध न्याय मिल सके। 3. अदालत : केंद्र सरकार के अनुसार राष्ट्रपति का पक्ष सुने बगैर यह आदेश गलत है। सुप्रीम कोर्ट में बहस के पहले अनेक कानूनी बिंदु मुद्दे निर्धारित हुए थे, जिन पर राज्यपाल की तरफ से अटाॅर्नी जनरल ने बहस की थी। सिविल प्रोसिजर कोड के अनुसार यदि इस फैसले से राष्ट्रपति प्रभावित हो रहे थे तो सरकार ने कोर्ट में अर्जी क्यों नहीं लगाई? दिलचस्प बात यह है कि वक्फ, राज्यपाल, पूजा-स्थल और एनआरसी जैसे मामलों में राज्यों और केंद्र की सरकारें ‘लग्जरी मुकदमेबाजी’ पर सरकारी खजाने को लुटाने के साथ अदालतों का कीमती वक्त बर्बाद करती हैं। कानून के सामने जब सभी बराबर हैं तो आम जनता से जुड़े सभी मामलों में प्रभावित होने वाले सभी लोगों का पक्ष सुनने के बाद ही अदालतों से फैसला होना चाहिए। 4. संविधान : सरकार की दलील है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को समय सीमा में बांधने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बजाय संविधान में संशोधन का रास्ता होना चाहिए। यह फैसला प्रशासनिक दृष्टि से अच्छा है, लेकिन जजों को भी 4 संवैधानिक सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए। पहला- केशवानंद भारती फैसले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को कानून निर्माण या संविधान संशोधन की शक्ति नहीं है। दूसरा- ऐसे मामलों में दो जजों के बजाय संविधान पीठ के 5 जजों के सामने सुनवाई होनी चाहिए। तीसरा- इंटरनेट रिसर्च और लॉ क्लर्क की मदद की वजह से लम्बे फैसले लिखने का चलन बढ़ गया है। यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फिजी के साथ पाकिस्तान के माध्यम से भारत की संवैधानिक व्यवस्था के विश्लेषण का प्रयास अप्रसांगिक होने के साथ गलत भी है। चौथा- सरकार की गलतियों को ठीक करने के लिए जजों को संरक्षक की भूमिका मिली है। लेकिन न्यायपालिका संविधान का अतिक्रमण करने लगी तो यह मर्ज लाइलाज हो सकता है। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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