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सीलमपुर हत्याकांड से उठा पर्दा, दिल्ली पुलिस ने 19 साल की लड़की जिकरा को दबोचा

Delhi Crime News: दिल्ली पुलिस ने सीलमपुर मर्डर केस में 9 लोगों को गिरफ्तार किया, जिसमें 2 महिलाएं और 2 नाबालिग शामिल हैं. 17 वर्षीय कुणाल की हत्या के मामले में साहिल और जिकरा मुख्य आरोपी हैं.

सरभंगा को टाइगर रिजर्व बनाने में खदान माफिया का रोड़ा:9 साल बाद प्रस्ताव खारिज; सरकार ने कहा- रोजगार छिनेंगे, पर्यावरणविद् बोले- यह कुतर्क

मध्यप्रदेश सरकार ने सतना जिला प्रशासन के सरभंगा टाइगर रिज़र्व एवं वाइल्डलाइफ सेंचुरी बनवाने की मांग वाले प्रस्ताव को 9 साल बाद खारिज कर दिया। इसके बाद एक बार फिर स्थानीय स्तर पर जन-जागरण अभियान शुरू हो गया है। अलग-अलग संगठनों की टोली घर-घर दस्तक देकर, गांव-गांव चौपाल लगाकर आदिवासी समुदाय एवं ग्रामीणों को सेंचुरी से होने वाले फायदे गिनवा रही हैं। वहीं दूसरी ओर, खनिज माफिया के इशारे पर कुछ विरोधी तत्व भी सक्रिय हैं जो ग्रामीणों को विस्थापन का भय दिखा रहे हैं। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर स्थानीय सांसद और विधायक ने चुप्पी साध रखी है। इधर, एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट भी सरकार द्वारा प्रस्ताव खारिज करने के तर्क को कुतर्क बता रहे हैं। उनका कहना है कि वन्य प्राणियों के संरक्षण और संवर्धन की चिंता से ज्यादा सरकार को खदानों के बंद होने का डर है। जिस लोकेशन पर सरभंगा टाइगर रिज़र्व एवं वाइल्डलाइफ सेंचुरी बनाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया था, दैनिक भास्कर की टीम वहां पहुंची और जमीनी हालातों को देखा। पढ़िए डिटेल्ड रिपोर्ट... पहले देखिए, सरभंगा के जंगल की चार तस्वीरें... अब जानिए, इस मुद्दे की शुरुआत कैसे हुई? हम बात कर रहे हैं सतना जिले के चित्रकूट उप वन मंडल अंतर्गत मझगवां रेंज के सरभंगा वन क्षेत्र की। करीब 13 साल पहले पी-213(22) नाम की एक बाघिन पन्ना टाइगर रिजर्व से सरभंगा के जंगल पहुंचती है। धीरे-धीरे उसने यहां स्थायी रूप से अपना बसेरा बना लिया। वन विभाग के अनुसार, यह बाघिन अब तक छह बार में कुल 18 शावकों को जन्म दे चुकी है। वह जून 2024 में आखिरी बार तीन शावकों की मां बनी है। अब वृद्ध हो चुकी यह बाघिन सरभंगा के वन्य जीवन में एक ऐतिहासिक अध्याय बन चुकी है। इस बाघिन की आमद के बाद ही वन विभाग ने सरभंगा के जंगल में नाइट विजन ट्रैप कैमरे लगाए। इन कैमरों में न केवल कई बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई, बल्कि पैंथर सहित अनेक अन्य वन्य प्राणियों की भी मौजूदगी सामने आई। लगातार मिल रहे इन प्रमाणों के बाद वर्ष 2016 में सरभंगा को टाइगर रिजर्व एवं वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित करने के साथ-साथ ब्रीडिंग सेंटर स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया गया। यह प्रस्ताव वन विभाग के वाइल्डलाइफ पीसीसीएफ को काफी पसंद आया और उन्होंने विस्तृत जानकारी सतना वनमंडल से मांगी। इसके बाद अप्रैल 2022 में, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक एवं प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने तत्कालीन डीएफओ विपिन पटेल के माध्यम से जिला पंचायत, जिला योजना समिति, सांसद एवं चित्रकूट विधायक से एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) की मांग की। लेकिन इतने महत्वपूर्ण प्रस्ताव के बावजूद किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस विषय में दिलचस्पी नहीं दिखाई। 2016 में सरकार को भेजा गया था प्रस्तावतत्कालीन मुख्य वन संरक्षक (सीएफ) आर. बी. शर्मा ने वर्ष 2016 में सरभंगा सर्किल में टाइगर रिज़र्व और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी की स्थापना का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा। जिसमें सरभंगा में बाघों के प्राकृतिक आवास और नैसर्गिक कॉरिडोर की उपस्थिति का जिक्र किया गया। प्रस्ताव में इस वन क्षेत्र में टाइगर और पैंथर के लिए एक ब्रीडिंग सेंटर बनाने की भी योजना शामिल थी। इसके तहत, वर्ष 2022 में वन्यजीव विभाग की टीम द्वारा किए गए सर्वेक्षण के बाद लगभग 7 हेक्टेयर वन भूमि पर तीन ग्रासलैंड भी विकसित किए। आरोप- माफियाओं का दबाव, इसलिए प्रस्ताव रिजेक्टसरभंगा में टाइगर रिज़र्व और वाइल्डलाइफ सेंचुरी स्थापित करने संबंधी नौ साल पहले भेजे गए विभागीय प्रस्ताव को सरकार ने अस्वीकृत कर दिया। वन विभाग के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी क्षितिज कुमार के अनुसार, सेंचुरी घोषित किए जाने की स्थिति में प्रस्तावित क्षेत्र में संचालित खदानों पर प्रतिबंध लग जाएगा, जिससे स्थानीय ग्रामीणों के जीवन पर खराब असर होगा। प्रस्तावित क्षेत्र के अंतर्गत 7 राजस्व ग्राम आते हैं और इसके 5 किलोमीटर के दायरे में कुल 53 गांव स्थित हैं। इन गांवों के अधिकांश निवासी ईंधन (जलाऊ लकड़ी) एवं पशुओं के खाने के लिए इस वन क्षेत्र पर निर्भर हैं। प्रस्तावित क्षेत्र की 300.240 हेक्टेयर भूमि पर अब तक 202 वन अधिकार पत्रक वितरित किए जा चुके हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रस्ताव रिजेक्ट होने का सबसे मुख्य कारण खनिज माफिया का दबाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ही है। ‘टाइगर स्टेट’ कहे जाने वाले मध्यप्रदेश में वन मंत्रालय को राष्ट्रीय महत्व के वन्य प्राणियों की तुलना में खदानों को संरक्षित रखने की ज्यादा चिंता है। 38 स्वीकृत लेकिन 6 खदानें ही एक्टिवभास्कर पड़ताल में यह सामने आया कि मझगवां तहसील में स्वीकृत 38 खदानों में से केवल 6 में ही खनन हो रहा है। जानकारी के अनुसार, मझगवां क्षेत्र में कुल 427.379 हेक्टेयर भूमि पर 38 खदानों को स्वीकृति दी गई है। इनमें से 22 खदानें, जो कि 239.52 हेक्टेयर भूमि पर स्थित हैं, वर्षों से बंद पड़ी हैं। कागजों में 187.859 हेक्टेयर भूमि पर बनी 16 खदानें चल रही हैं, जिनमें बाक्साइट, लेटराइट, ओकर और व्हाइट क्ले जैसे खनिजों का उत्खनन होता है। इनकी जमीनी हकीकत यह है कि इन 16 में से 10 खदानों में वास्तव में कोई खनिज मौजूद ही नहीं है। हालांकि अब तक इसे लेकर कोई फिजिकल वेरिफिकेशन नहीं हुआ। कांग्रेस नेता रितेश त्रिपाठी का आरोप है कि खनिज विहीन इन खदानों की ईटीपी (इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) का दुरुपयोग कर माफिया अवैध खनिज को वैध बताकर बाजार में खपाते हैं। जानकारी के अनुसार, क्षेत्र में उपलब्ध खनिजों में सबसे अधिक कीमती बाक्साइट है, जिसकी 12 खदानें स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से करीब 6 खदानें ही सक्रिय हैं। त्रिपाठी का कहना है खनिज माफिया को लाभ पहुंचाने सरभंगा क्षेत्र में प्रस्तावित टाइगर रिज़र्व व वाइल्डलाइफ सेंचुरी के प्रस्ताव को साजिशन खारिज कराया गया। यदि राजनीतिक संरक्षण में खनिज माफिया की गतिविधियां इसी तरह बेरोकटोक चलती रहीं, तो आने वाले समय में राजस्व की ही तरह वन भूमि भी अवैध उत्खनन से नहीं बच पाएगी। प्रधानमंत्री को दो बार पत्र लिख चुके महापौरसरभंगा में टाइगर सेंचुरी की स्थापना की मांग को लेकर सतना महापौर योगेश ताम्रकार प्रधानमंत्री को दो बार पत्र लिख चुके हैं। उनका कहना है कि बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए सरभंगा क्षेत्र सबसे अच्छी जगह है, यहां सेंचुरी बनना ही चाहिए। महापौर का कहना है कि, "यदि टाइगर स्टेट मध्यप्रदेश में ही बाघों को संरक्षण नहीं मिलेगा, तो फिर और कहां मिलेगा?" आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि मात्र कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने सतना जिले को इस महत्वपूर्ण सौगात से वंचित करने का कोशिश निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजस्व ग्रामों की उपस्थिति को आधार बनाकर अभयारण्य के प्रस्ताव को नकारना तर्कहीन है। प्रदेश के कई टाइगर रिज़र्व और नेशनल पार्कों में राजस्व ग्राम स्थित हैं और सरभंगा में विस्थापन की आशंका महज काल्पनिक है। पूर्व डीएफओ की नज़र में क्यों जरूरी है सरभंगा सेंचुरी?मूल प्रस्ताव बनाने वाले सेवानिवृत्त डीएफओ आर. बी. शर्मा ने सरभंगा टाइगर रिजर्व व वाइल्डलाइफ सेंचुरी की आवश्यकता के तीन कारण बताए- 1. नेचुरल कॉरिडोरशर्मा के अनुसार, चित्रकूट उप वन मंडल का संपूर्ण वन क्षेत्र जैवविविधता और जलवायु की दृष्टि से न केवल बाघों, बल्कि शाकाहारी वन्य प्राणियों के लिए भी बेस्ट है। पन्ना टाइगर रिज़र्व, बरौंधा, सरभंगा और उत्तर प्रदेश स्थित रानीपुर टाइगर रिज़र्व एक प्राकृतिक बाघ कॉरिडोर है। 2. केन-बेतवा लिंक परियोजना का प्रभावउन्होंने बताया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिज़र्व का बड़ा हिस्सा प्रभावित हो रहा है, जिससे वहां के वन्य प्राणी बरौंधा के माध्यम से सरभंगा के जंगलों की ओर आ सकते हैं। इस स्थिति में सरभंगा क्षेत्र का संरक्षित होना और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। 3. समृद्धि और खुशहाली का माध्यमशर्मा ने सरभंगा क्षेत्र को सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़ा बताया। कहा कि कभी दस्यु प्रभावित रहा यह क्षेत्र, आज भी आदिवासी समुदायों के शैक्षणिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के मामले में पिछड़ा है। यदि इस क्षेत्र को टाइगर रिज़र्व घोषित किया जाए, तो यह न केवल वन्यजीव संरक्षण का मजबूत कदम होगा, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों के जीवन स्तर में सुधार लाने का भी माध्यम बन सकता है। इससे क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से जुड़ सकेगा। अपने ही पिता को मारकर भीम बना शेरों का सरताजसरभंगा के जंगलों में लंबे समय से विचरण कर रहे भीम (बाघ) की हाल ही में एक तस्वीर ट्रैप कैमरे में कैद हुई थी। इस बाघ के बारे में बताया जाता है कि पहले भी कई ग्रामीणों का सामना भीम से हो चुका है, लेकिन अब तक उसने किसी भी इंसान को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। वन विभाग के अनुसार, यह वही भीम है जिसने मात्र तीन साल की उम्र में अपने पिता, बाबा, को मात देकर जंगल में अपना दबदबा कायम किया था। सरभंगा वन क्षेत्र के रेंजर पंकज द्विवेदी ने बताया कि भीम अब 8 साल का पूर्ण वयस्क बाघ है और उसका क्षेत्र धारकुंडी से बरौधा तक फैला है। वह इसी इलाके में स्वतंत्र रूप से विचरण करता है। एनओसी के लिए जिला पंचायत में आएगा प्रस्तावचित्रकूट उप वन मंडल के मझगवां रेंज की सरभंगा सर्किल में टाइगर रिजर्व व वाइल्डलाइफ सेंचुरी की स्थापना क

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