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पर्यावरण का सतत विकास जागरूकता से संभव

भिंड | शहर के प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस एमजेएस शासकीय महाविद्यालय में पर्यावरणीय चुनौतियां एवं सतत विकास विषय पर मंगलवार को एक दिवसीय वेबिनार का आयोजन हुआ। वेबिनार में डॉ. शिव ओम सिंह ने कहा कि पर्यावरण का सतत विकास जागरूकता से संभव है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ संबंध है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इसलिए लोगों को पर्यावरण संरक्षण के लिए अब आगे की जरूरत है। वेबिनार से कार्यक्रम संयोजक प्रो. अभिषेक यादव, डॉ. ऋचा सक्सेना, डॉ. बीपीएस सेंगर, डॉ. निर्मला खलको, डॉ. ममता भदौरिया, डॉ. आभास अस्थाना, डॉ. शैलेंद्र शर्मा, डॉ. प्रभा तिवारी, डॉ. सोमवीर, डॉ. अमृता पवैया से जुड़े रहे।

MBBS स्टूडेंट ने छठी मंजिल से कूद कर दी जान, एक पेपर खराब होने से था तनाव

पुलिस ने बताया कि कॉलेज हॉस्टल की छठी मंजिल पर मौजूद टेरिस से मृतक के चप्पल और मोबाइल मिले हैं.पुलिस ने बताया कि दो दिन पहले हुए एक पेपर खराब होने की वजह से मृतक स्ट्रेस में चल रहा था. पुलिस ने बताया कि जांच जारी है.

ज्यां द्रेज का कॉलम:बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण पर खर्च रेवड़ी नहीं, निवेश है

अगला केंद्रीय बजट अब दूर नहीं है। जैसे-जैसे बजट नजदीक आ रहा है, बिजनेस-लीडर्स सब्सिडी, ठेका, कर-कटौती और अन्य ‘रेवड़ियों’ के लिए पैरवी कर रहे हैं। समय-समय पर, वित्त मंत्रालय खुद बजट पर परामर्श आयोजित करता है। आमंत्रित किए जाने वाले लोग मुख्य रूप से बिजनेस-लीडर्स और सरकार समर्थक अर्थशास्त्री होते हैं। सरकार के आलोचकों का स्वागत नहीं किया जाता है, न ही श्रमिक संगठनों का। और गरीब लोग तो कहीं नजर ही नहीं आते। जब इन परामर्शों में गरीब लोगों की सुनवाई नहीं है, तो बजट आसानी से उनके हितों को अनदेखा कर सकता है। मैं पिछले दस वर्षों के कुछ उदाहरण देता हूं। पहला, पिछले दस सालों में स्कूलों में मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी कार्यक्रम के लिए बजट आवंटन में भारी गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, इस साल मध्याह्न भोजन का बजट सिर्फ 12,467 करोड़ रुपए है, जबकि 2014-15 में यह 13,215 करोड़ रुपए था। वास्तविक रूप से, यानी महंगाई को समायोजित करने के बाद, यह करीब 40 प्रतिशत की गिरावट है। आंगनवाड़ी कार्यक्रम के बजट में भी इसी तरह की गिरावट है। राज्य सरकारों से उम्मीद की जाती है कि वे इस कमी को पूरा करें, लेकिन गरीब राज्यों के लिए ऐसा करना बिल्कुल भी आसान नहीं है। इस वजह से, पिछले दस सालों में मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी सेवाओं की गुणवत्ता में कोई विशेष सुधार नहीं हुआ है। दूसरा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन में भी ऐसा ही पैटर्न दिखता है। यह एक बेहतेरीन कार्यक्रम है और बिना किसी खास गबन के सबसे गरीब लोगों तक पहुंचता है। लेकिन 2006 से पेंशन राशि में केंद्र सरकार के हिस्से में कोई वृद्धि नहीं हुई है : यह वृद्धों के लिए मात्र 200 रुपए तथा विधवाओं के लिए 300 रुपए प्रतिमाह है! साथ ही, कवरेज बीपीएल परिवारों तक ही सीमित है। अधिकांश राज्यों ने अपने संसाधनों से कवरेज विस्तार किया और पेंशन राशि बढ़ाई है, लेकिन केंद्र सरकार को भी इसमें अधिक योगदान देना चाहिए। तीसरा, केंद्र सरकार ने गर्भवती महिलाओं के कल्याण की जिम्मेदारी से हाथ पीछे खींच लिए हैं। भारत में कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान पौष्टिक भोजन, आराम और स्वास्थ्य सेवा से वंचित रहती हैं। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, उत्तर भारत में केवल 22 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं गर्भावस्था के दौरान विशेष भोजन लेती हैं। गर्भवती महिलाओं की सहायता के लिए, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 सभी गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपए के मातृत्व लाभ का हक देता है। आज की महंगाई के हिसाब से यह 10,000 रुपए से अधिक होगा। इसके बजाय, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) ने लाभ को घटाकर 5,000 रुपए कर दिया है, और इसे प्रति परिवार एक ही बच्चे (या दो, यदि दूसरा बच्चा लड़की है) तक सीमित कर दिया है। पीएमएमवीवाई के तहत पात्र महिलाएं भी अक्सर किसी न किसी कारण से लाभ प्राप्त करने में विफल रहती हैं। मातृत्व लाभ पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए प्रति वर्ष कम से कम 12,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होती है, लेकिन पीएमएमवीवाई का बजट 3,000 करोड़ से भी कम है। इन कमियों की भरपाई का समय आ गया है। मध्याह्न भोजन, आंगनवाड़ी कार्यक्रम, सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मातृत्व लाभ पर बहुत अधिक पैसा खर्च नहीं होता- लगभग 40,000 करोड़ रुपए ही लगते हैं। केंद्र सरकार अगर चाहे तो बिना किसी परेशानी के इन कार्यक्रमों के बजट को दोगुना कर सकती है। इससे लगभग 12 करोड़ स्कूल के बच्चों, 10 करोड़ आंगनवाड़ी के बच्चों, 3 करोड़ पेंशनभोगियों और 2 करोड़ गर्भवती महिलाओं को लाभ होगा। यह रेवड़ी नहीं बल्कि एक अच्छा निवेश होगा : देश के भविष्य के लिए स्वस्थ और सुपोषित बच्चों से अधिक महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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