हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) के 92 साल पुराने इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है. कंपनी ने पहली बार किसी महिला को अपनी कमान सौंपी है. प्रिया नायर को HUL का अगला सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त किया गया है. वे मौजूदा सीईओ रोहित जावा की जगह लेंगी, जिनका कार्यकाल 31 जुलाई को पूरा हो रहा है. 1 अगस्त 2025 से प्रिया आधिकारिक रूप से इस अहम पद का कार्यभार संभालेंगी.इस समय प्रिया नायर यूनिलीवर की ग्लोबल ब्यूटी एंड वेलनेस यूनिट की प्रेसिडेंट हैं. यह यूनिट यूनिलीवर की सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली इकाई मानी जाती है, जिसमें दुनियाभर के दर्जनों देशों में मौजूद ब्यूटी ब्रांड्स शामिल हैं. प्रिया की रणनीतिक सोच और नेतृत्व क्षमता ने कंपनी को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है.कहां से की पढ़ाई-लिखाईपढ़ाई-लिखाई की बात की जाए तो प्रिया नायर ने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन और मैनेजमेंट की पढ़ाई की है. इसके अलावा उन्होंने पुणे के सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की है.कॉर्पोरेट की दुनिया में प्रेरणाप्रिया नायर का मानना है कि कॉर्पोरेट जीवन में सबसे जरूरी चीज है - खुद को जानना और यह समझना कि आप क्या करना चाहते हैं. उनका कहना है अगर आपको ये समझ आ गया कि आपको किस दिशा में बढ़ना है, तो आप कॉर्पोरेट की किसी भी चुनौती का डटकर सामना कर सकते हैं.ये भी पढ़ें: दिल्ली के सरकारी स्कूल के इन टीचर्स के लिए गुड न्यूज, रेखा गुप्ता की सरकार ने इतनी बढ़ा दी सैलरीमहिलाओं के लिए मिसालHUL जैसी दिग्गज कंपनी की कमान संभालने वाली पहली महिला बनकर प्रिया नायर न सिर्फ कॉर्पोरेट जगत में एक नई लकीर खींच रही हैं, बल्कि वे लाखों लड़कियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बन रही हैं. वे इस बदलाव की प्रतीक हैं कि अब महिलाएं सिर्फ बराबरी की बात नहीं कर रहीं, बल्कि जिम्मेदारी और नेतृत्व की भूमिका में आगे बढ़कर अपने कंधों पर कंपनियों का भविष्य संभाल रही हैं.कंपनी की ओर से स्वागतHUL की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि प्रिया का विजन, अनुभव और ग्राहकों की समझ उन्हें इस पद के लिए सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार बनाता है. कंपनी को विश्वास है कि उनके नेतृत्व में HUL और मजबूत और आधुनिक ब्रांड के रूप में उभरेगी.ये भी पढ़ें: एक दिन में कितना कमा लेते हैं Apple के नए COO सबीह खान, सैलरी जानकर उड़ जाएंगे आपके होश
HUL यानी हिंदुस्तान यूनिलिवर लिमिटेड ने प्रिया नायर को अगला चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर यानी CEO और मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया है। 92 साल में पहली बार HUL ने यह पद किसी महिला को दिया है। वे रोहित जावा की जगह लेंगी। 31 जुलाई को रोहित का कार्यकाल पूरा हो रहा है और 1 अगस्त से प्रिया जॉइन करेंगी। वर्तमान में वे यूनिलिवर के ब्यूटी एंड वेलनेस की प्रेसिडेंट हैं। यह दुनियाभर में कंपनी का सबसे ज्यादा कमाई करने वाला बिजनेस है। जिज्ञासु रहें और हमेशा सीखते रहें- प्रिया नायर कॉर्पोरेट लाइफ को लेकर प्रिया नायर कहती हैं, ‘कार्पोरेट लाइफ में आपको खुद को खुशकिस्मत समझना चाहिए अगर आपको समझ आ गया है कि आप आखिर करना क्या चाहते हैं। मैं उन्हीं में से एक हूं। अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो कॉर्पोरेट में सामने आने वाली हर चुनौती का सामना कर सकेंगे।’ इसके अलावा प्रिया कहती हैं कि जिज्ञासु रहें और हमेशा सीखते रहें। वे कहती हैं, ‘मैनेजमेंट फील्ड में सबकुछ इतनी तेजी से बदल रहा है। अगर आप चाहते हैं कि आप भी बदलाव के साथ आगे बढ़ पाए तो आपको निरंतर सीखते रहना पड़ेगा।’ ऐसी ही और खबरें पढ़ें... पीरियड्स की जांच के लिए कपड़े उतरवाए:महाराष्ट्र के स्कूल में 5वीं से 10वीं तक की बच्चियों के साथ हरकत, प्रिंसिपल हिरासत में महाराष्ट्र के ठाणे के एक प्राइवेट स्कूल में कक्षा 5 से 10 तक की बच्चियों के कपड़े उतरवाकर चेकिंग की गई। पूरी खबर पढ़ें...
बिहार में मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा का चुनाव आयोग का निर्णय चिंता का विषय बन सकता है। 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम शामिल करने या सत्यापित करने के लिए मतदाताओं से अपेक्षित दस्तावेजी प्रमाण ऐसे हैं, जिन्हें प्रस्तुत करना लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने इनमें आधार और वोटर कार्ड के अलावा राशन कार्ड को भी मान्य दस्तावेज मानने की सलाह देकर कुछ हद तक भ्रम को दूर करने का प्रयास किया है। लेकिन विशेष समीक्षा के लिए समय बहुत कम है। साथ ही लगता है यह एनआरसी तैयार करने की प्रक्रिया का एक जरिया बन सकता है, क्योंकि इसका विस्तार अन्य राज्यों में भी होगा। बिहार के कई आम नागरिकों के पास आमतौर पर कई दस्तावेज नहीं होते। उसमें भी दलित, गरीब, आदिवासी, मुस्लिम व अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए तो यह और भी कठिन होगा। चूंकि बिहारियों में एक बड़ी संख्या ऐसे प्रवासियों की है, जो आजीविका की तलाश में बड़े शहरों में जाते हैं और कुछ महीनों में लौट आते हैं, इसलिए उनमें से कई को अपने मताधिकार खोने का अंदेशा होगा। समीक्षा के नए नियमों के अनुसार मतदाताओं के लिए अपने नाम मतदाता सूची में शामिल करने या बनाए रखने के लिए नागरिकता का प्रमाण प्रस्तुत करना आवश्यक है। इसकी घोषणा 24 जून को की गई थी और यह 25 जून से प्रभावी हो गया। यह 2003 की मतदाता सूची को आधार के रूप में उपयोग करेगा। इस प्रक्रिया में डोर-टु-डोर सत्यापन, नए दस्तावेजीकरण की आवश्यकताएं शामिल हैं, और इसका लक्ष्य 30 सितंबर तक अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करना है। 2003 की मतदाता सूची में सूचीबद्ध मतदाताओं को चिह्नित किए जाने तक दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि 2003 के बाद जोड़े गए या सूची में पंजीकरण के लिए आवेदन करने वालों को फॉर्म भरना होगा और भारतीय नागरिकता की घोषणा, जन्मतिथि, स्थान का प्रमाण देना होगा। ऊपरी तौर पर तो ये उपाय चुनावी पारदर्शिता के लिए वोटर-लिस्ट से फर्जी मतदाताओं को हटाने के लक्ष्य से जुड़े प्रतीत होते हैं। लेकिन इसकी एक प्रमुख खामी यह हो सकती है कि गरीब, दलित, मुस्लिम, आदिवासी और प्रवासी समुदायों के कई व्यक्तियों/परिवारों के पास अकसर औपचारिक जन्म प्रमाण पत्र नहीं होते। राज्य के दस्तावेजों में ऐतिहासिक कमियों के कारण उनके माता-पिता के जन्म स्थान की पुष्टि के लिए दस्तावेज प्रस्तुत करना एक बड़ी चुनौती होगी। एक और खामी नई दस्तावेजीकरण सम्बंधी आवश्यकताओं के बारे में व्यापक जागरूकता और स्पष्टता का अभाव है। कई मतदाता- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में- पूरी तरह से समझ नहीं पाते हैं कि किन दस्तावेजों की आवश्यकता है, फॉर्म कैसे भरें, या उन्हें कहां और कब जमा करें। सीमित पहुंच, जटिल कागजी कार्रवाई और 30 सितंबर तक मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन तक की सीमित समय-सीमा के कारण भ्रम और गलतियों का खतरा है। एक चिंता यह भी है कि यह प्रक्रिया बूथ स्तरीय अधिकारियों और ईआरओ पर निर्भर है और उनके पास विवेकाधीन शक्ति है। हालांकि इस प्रक्रिया में दावों, आपत्तियों और अपीलों की गुंजाइश है, लेकिन प्रारंभिक सत्यापन और निर्णय लेने का काम स्थानीय अधिकारियों के हाथों में होने से विसंगतियां, देरी या पक्षपातपूर्ण निर्णय हो सकते हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा नाम हटाने और आवेदनों की ट्रैकिंग के संबंध में पारदर्शिता का अभाव है। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से हटाए जा रहे नामों की सूची प्रकाशित करने की कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है, न ही उसने आवेदकों को उनके आवेदनों की स्थिति पर नजर रखने के लिए कोई स्पष्ट और सुलभ प्रणाली प्रदान की है। इससे नागरिक समाज या मीडिया के लिए इस प्रक्रिया की निगरानी करना, त्रुटियों की पहचान करना या गलत तरीके से हटाए गए नामों को चुनौती देना मुश्किल हो जाता है। बूथ स्तरीय अधिकारियों (बीएलओ) के लिए एक महीने के समय में यह कार्य बेहद कठिन प्रतीत होता है। दबाव में काम करने का मतलब होगा गलतियां होना और बड़ी संख्या में मतदाताओं तक पहुंच न पाना। पहले फॉर्म वितरित करना और फिर उन्हें एक महीने के अंतराल में आवश्यक दस्तावेजों के साथ वापस लेना बेहद मुश्किल हो सकता है। चुनाव आयोग भले दावा कर रहा हो कि फॉर्म बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचा दिए गए हैं, लेकिन यह 50% से भी कम मतदाताओं तक पहुंच पाए हैं। कई मतदाताओं के मतदाता सूची से बाहर रह जाने का अंदेशा है, भले ही वे उस निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य रूप से रहने वाले वास्तविक मतदाता ही क्यों न हों। क्या यह ऐसे लोगों की नागरिकता पर संदेह करने के समान नहीं होगा?(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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