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शशि थरूर का कॉलम:अपनी पश्चिमी सीमा पर भी संघर्ष में उलझा है पाकिस्तान

पहलगाम हमले की निंदा करते हुए अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने जो बयान जारी किया, वो चौंकाने वाला था। वहां के विदेश मंत्रालय ने हमले में मारे गए नागरिकों के परिवारों के प्रति संवेदना जताते हुए इस पर भी जोर दिया कि ऐसे हमलों से क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा है। पाकिस्तान में आतंकवादियों के आकाओं की भी निंदा की गई। यह पाकिस्तान से तालिबान के बढ़ते अलगाव का पहला संकेत नहीं है। वास्तव में, पिछले साल के अंत तक दोनों के संबंध इतने खराब हो गए थे कि अफगानिस्तान के लिए पाकिस्तान के विशेष प्रतिनिधि मोहम्मद सादिक खान तनाव कम करने के लिए वरिष्ठ तालिबान नेताओं से बातचीत करने के लिए काबुल गए थे। लेकिन तभी 24 दिसंबर को पाकिस्तान वायुसेना ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में कथित पाकिस्तानी तालिबान (जिसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के रूप में जाना जाता है) के ठिकानों पर हमले किए, जिसमें 46 लोग मारे गए। इस हमले को 21 दिसंबर को टीटीपी के हमले का प्रतिशोध माना गया, जिसमें 16 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे। इसके तीन दिन बाद पाकिस्तान के इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) निदेशालय का नेतृत्व करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने एक रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि पिछले साल आतंकवाद विरोधी अभियानों में पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के 383 अधिकारियों और सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि खुफिया सूचनाओं के आधार पर लगभग 60,000 अभियानों में टीटीपी के सदस्यों सहित लगभग 925 आतंकवादियों को मार गिराया गया था। उन्होंने बताया कि टीटीपी अफगानिस्तान में पनाह लेकर पाकिस्तान के नागरिकों को निशाना बना रहा था। यह बयान विडम्बना से भरा था, क्योंकि अफगान-तालिबान और उससे जुड़े हक्कानी नेटवर्क काे पिछली अफगान सरकार और अमेरिकी सेना के खिलाफ रसद, सैन्य और नैतिक समर्थन प्रदान करने का पाकिस्तान का लंबा इतिहास रहा है। इसका अंत 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के रूप में हुआ। कुछ ही सालों में विदेश-नीतियों में कितना फर्क आ जाता है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि भारत आधिकारिक तौर पर तालिबान को अफगान लोगों का प्रतिनिधित्व करने के रूप में मान्यता नहीं देता है। जब अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान के अंदर कई स्थानों पर हमलों की घोषणा करते हुए इसकी जिम्मेदारी ली तो टकराव और बढ़ गया। दिलचस्प बात यह है कि अफगान सरकार ने स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करने से परहेज किया कि वह पाकिस्तानी क्षेत्र को निशाना बना रही थी। इसके बजाय उसने कहा कि हमले एक ‘काल्पनिक रेखा’ से परे किए जा रहे थे। वे औपनिवेशिक युग की डूरंड रेखा की ओर इशारा कर रहे थे, जिसे किसी भी अफगान सरकार ने मान्यता नहीं दी है। यह 2,640 किमी लंबी अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमारेखा है। उसके बाद से हालात शांत होते दिखे हैं, लेकिन जाहिर है कि पाकिस्तान का अब अफगानिस्तान पर पहले जैसा प्रभाव नहीं रह गया है। पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस एजेंसी ने तालिबान को पोसने, उसे हथियार और प्रशिक्षण देने और उसकी फंडिंग करने में दशकों बिताए हैं और उसका इस्तेमाल पाकिस्तान के सुरक्षा-प्रतिष्ठान के प्रॉक्सी के रूप में किया है। हालांकि पाकिस्तानी सेना तालिबान के स्वभाव से अवगत थी, लेकिन उसने इस समूह को अफगानिस्तान पर नियंत्रण करने और भारत के खिलाफ रणनीतिक गहराई हासिल करने के साधन के रूप में देखा था। यही कारण था कि 2021 में जब अफगान तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया तो पाकिस्तान ने खुलेआम खुशी मनाई थी। लेकिन तालिबान के रूप में पाकिस्तान ने एक भस्मासुर रच दिया है, जो अब उसके नियंत्रण के बाहर हो गया है। अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान का रिश्ता भी एक रणनीतिक दलदल बन चुका है। पाकिस्तान की सरकार में शामिल कुछ तत्व इसके लिए अमेरिका की मदद लेने और अफगानिस्तान में आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका को ड्रोन बेस देने का सुझाव तक दे रहे हैं। यह विचार ही अपने आपमें बेतुका है कि अमेरिकी ड्रोन पाकिस्तान को अफगानिस्तान में अपनी स्वयं की अमेरिका विरोधी नीतियों से पैदा हुए विद्रोह का सामना करने में मदद करेंगे। सेना प्रमुख असीम मुनीर अपने मुल्क की रणनीतिक उलझन के प्रतीक हैं। उन्होंने अफगान हुकूमत से आग्रह किया है कि वे अपने ‘परोपकारी इस्लामिक पड़ोसी भाई’ को तरजीह दें, टीटीपी को नहीं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच तनाव तेजी से बढ़ रहा है। एक जमाने में पाकिस्तान का साथी रहा अफगानिस्तान अब उसके लिए एक ‘लायबिलिटी’ बन चुका है। भारत को इस समूचे परिदृश्य पर पैनी नजर बनाए रखना चाहिए।(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

बाजार में कुछ दिन दिखता है ये करामाती फल, चील जैसी कर देगा आंखों की रोशनी!

बालाघाट में बाघ के हमले से अब तक दो मौत:कछार में वन विभाग की टीम कर रही दिन-रात गश्त, 5 ट्रेप कैमरे लगाए

बालाघाट के कटंगी परिक्षेत्र के वनग्राम कछार में बाघ के आतंक से लोग दहशत में हैं। 16 मई को जंगल में तेंदूपत्ता तोड़ने गए 33 वर्षीय अनिल भलावी पर बाघ ने हमला कर दिया। इस हमले में अनिल की मौत हो गई। घटना के बाद से गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। सरपंच उमेश पटले के अनुसार ग्रामीण डर के मारे घरों में दुबके हुए हैं। कटंगी परिक्षेत्र में पिछले पखवाड़े में बाघ के हमले से दो मौतें हो चुकी हैं। वन विभाग ने बाघ की पहचान और उसकी लोकेशन ट्रेस करने के लिए जंगल में 5 ट्रेप कैमरे लगाए हैं। उड़नदस्ता और गश्ती दल सर्च अभियान में लगे हैं। परिक्षेत्र अधिकारी बाबुलाल चढ्ढार ने बताया कि आगामी 5-6 दिनों तक रात में सघन गश्त की जाएगी। दिन में स्थानीय अमला गांव और आसपास के क्षेत्र में तैनात है। घटना के दिन अनिल कुछ ग्रामीणों के साथ तेंदूपत्ता तोड़ने गया था। बाघ ने झाड़ियों से निकलकर उस पर हमला किया और उसके कमर के नीचे के हिस्से को नोंच डाला। पुलिस और वन विभाग ने मौके पर ही पोस्टमार्टम कराया और शाम 8 बजे अंतिम संस्कार किया गया। परिक्षेत्र अधिकारी चढ्ढार ने बताया कि वन्यप्राणी के हमले से मृतक के परिजनों को मिलने वाली सहायता राशि की कार्रवाई पूरी हो गई है। एक-दो दिन में यह राशि परिजनों को दी जाएगी। फिलहाल ग्रामीणों को जंगल की ओर जाने से मना किया गया है। वनग्राम कछार में तकरीबन 32 परिवार रहते है, जिनके जीविकोपार्जन का साधन, वन पर ही निर्भर है। मुख्यालय से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर, इस गांव तक पहुंचने के लिए कटंगी से आंबामाई के बाद दाहिने हाथ पर कच्चे रास्ते से गांव तक जाते है। जहां मूलभूत सुविधा में अब भी ग्रामीण नल-जल योजना के पानी से वंचित है। सरपंच उमेश पटले बताते है कि गांव में पत्थर होने से जलस्त्रोत नहीं मिल पा रहा है। हालांकि गांव में बिजली और सड़क की पूरी व्यवस्था है।

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