बदलते समय की जरूरतों को देखते हुए किआ ने खास अपने ग्राहकों के लिए एक कॉम्पैक्ट एसयूवी लायी है. जिमसें किआ ने सेफ्टी फीचर्स और परफॉरमेंस पर खास ध्यान दी है. ड्यूल पैन पैरानॉमिक सनरूफ से लेकर ADAS लेवल 2 के साथ 16 ऑटोनोमस सेफ्टी फीचर्स इनस्टॉल की है. इसके और भी दूसरे फ़ीचर्स के बारे में हम आगे जानेंगे. The post Kia Syros Full Review: 9 लाख रुपए के एसयूवी में हैं इतने फीचर्स, परफॉरमेंस भी दमदार appeared first on Prabhat Khabar.
भोजपुर का ऐसा गांव जिसने आजतक सड़क नहीं देखी है। गांव की आबादी 4000 है। वोटरों की संख्या 2700 है। गांव में सबसे ज्यादा ब्राह्मण हैं। दूसरे नंबर पर यादवों की संख्या है और सबसे कम हरिजन हैं। क्षेत्र के विधायक राहुल तिवारी उर्फ मंटू तिवारी भी ब्राह्मण हैं। विधायक कहते हैं, गांव की सड़क का डिस्टेंस ज्यादा है। जमीन रियायती है। जब भी इस गांव में सड़क बनेगी तो मुख्यमंत्री टोला योजना के तहत बनेगी। मैंने गांव को लिस्ट में रखा है, मापी भी करा ली है। जब सरकार नींद से जागेगी, तब गांव में सड़क बनेगी। जब भी टेंडर होगा तो एनओसी लेने की पहल की जाएगी। मुख्यमंत्री टोला संपर्क योजना के तहत मेरे विधानसभा में पिछले 5 साल में एक ही टेंडर हुआ है। इसके अलावा अभी तक कोई भी टेंडर नहीं हुआ है। मामला शाहपुर प्रखंड अंतर्गत बहोरनपुर पंचायत के धमवल गांव का है। 2 किमी सड़क की मांग नहीं हो रही पूरी गांव से बाहर जाने के लिए इन्हें 2 किमी के कच्चे मार्ग से गुजरना पड़ता है। बरसात के समय परेशानी और बढ़ जाती है, क्योंकि गांव में बाढ़ का पानी चारों तरफ भरा रहता है। ऐसे में ग्रामीणों को नाव से करीब 6 गांव को पार करना पड़ता है। 15 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। गांव जिला का सबसे नीचला इलाका है। यहां सबसे पहले बाढ़ आती है और बाढ़ का पानी सबसे अंत में सूखता है। गांव के करीब 1400 लोग बाढ़ के समय पलायन कर जाते हैं। किराए के घर में तीन महीने तक रहते हैं। गांव के 60 साल के बुजुर्ग कहते हैं जब से हमारा जन्म हुआ हमने अपने गांव में कभी सड़क देखी ही नहीं। गांव में अधिकारी और प्रतिनिधि नहीं आते गांव के लोगों ने रोड के लिए BDO, CO, DM से लेकर विधायक, सांसद और मंत्री तक को लेटर दिया है। इसके बाद भी इनकी मांग पूरी नहीं हुई तो इनकी नाराजगी और बढ़ गई है। गांव में अधिकारी, जनप्रतिनिधि तभी आते हैं जब चुनाव का समय आता है। ये लोग आश्वासन देते हैं और चले जाते हैं। जिम्मेदारों को गांव की समस्या से लेना-देना नहीं होता। इन्हीं सब कारण की वजह से 2024 लोकसभा चुनाव में वोट बहिष्कार किया था। अब ये लोग विधानसभा इलेक्शन में भी वोट बहिष्कार करेंगे। हर बार बाढ़ में टूट जाती है पुलिया गांव से मुख्य सड़क तक 2 किमी वाले कच्चे रास्ते पर एक नहर है। जिसपर स्थानीय मुखिया की पहल पर हर साल एक कामचलाऊ पुलिया बनाई जाती है। सिमेंट के मोटे पाइप के ऊपर मिट्टी भर दी जाती है। इसी से होकर आना-जाना होता है। जब बाढ़ का पानी आता है तो मिट्टी बह जाती। बाढ़ के बाद फिर से उसी प्रकार से पुलिया बना दी जाती है। धमवल गांव के आसपास भरौली, सुहिया, सहजौली, शाहपुर समेत अन्य गांव हैं। इन्हीं गांव से होकर बाढ़ के दिनों नाव से लोग मुख्य सड़क जाते हैं। ग्रामीणों ने बताई अपनी आपबीती... गांव में विधि व्यवस्था नहीं ग्रामीण अक्षय कुमार यादव ने कहा कि हमारे गांव में कोई विधि व्यवस्था नहीं है। एक पुलिया हमलोगों ने बनाई है। यहां हर साल दुर्घटना होती है। चाहे कोई भी सरकार हो ऐसा कोई सगा नहीं जिसने हमारे गांव का मत ठगा नहीं। शिकायत सभी अधिकारियों से हमलोगों ने की है। हमारे गांव में इंटर तक स्कूल है, लेकिन बरसात के दिनों में बंद रहते हैं। भगवान के सहारे गांव के लोग सोनी कुमारी ने बताया कि जब से मेरा जन्म हुआ है। मैंने अपने गांव में सड़क देखी ही नहीं। आने-जाने में बहुत दिक्कत होती है। बारिश परेशानी और बढ़ जाती है। कपड़े ऊपर करके जाना पड़ता है। खेती यहीं करना पड़ता है। नागेंद्र ने कहा कि बहुत मुश्किल है आना-जाना। भगवान के सहारे है गांव के लोग। पानी-कीचड़ परेशानी और नाव सहारा 60 साल के किसान नागेंद्र सिंह ने भी बताया कि एक बार रास्ता बनने की उम्मीद जगी थी। जब मुन्नी देवी विधायक थी। उस दौरान प्रयास किया गया था, लेकिन किसी कारण आगे की प्रक्रिया नहीं हुई। गांव में आने का यही रास्ता है। यह रास्ता सिन्हा से लेकर नैनी तक चला जाता है। बरसात में पानी और कीचड़ हो जाता है। बाढ़ में नाव से जाना पड़ता है। तबीयत खराब होने पर जान बचाना मुश्किल सनिष्क कुमार सिंह ने बताया कि गांव चारों तरफ से बाढ़ से घिर जाता है। बाढ़ के समय में किसी की तबीयत खराब होने पर जान बचाना मुश्किल हो जाता है। बाढ़ के समय गांव के कई ग्रामीण दूसरे गांव में किराए के मकान में रहते है। बाइक या दूसरी गाड़ी को काफी दूर खड़ा करना पड़ता है। ग्रामीण चंद्रभुवन तिवारी ने कहा कि समस्या की जानकारी सभी अधिकारियों और नेताओं को है। बाढ़ के समय अपने बच्चों को कंधे पर चढ़ाकर पानी से गुजरना पड़ता है। 2014 में पूर्व केंद्रीय मंत्री से मांग की थी पिछले दस सालों से ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन दिया जा रहा है। ग्रामीणों ने 2014 में चुनाव जीतने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सह सांसद राज कुमार सिंह से मिलकर गांव में सड़क बनाने की मांग की थी। उसके बाद से सिर्फ आश्वासन मिला। राज कुमार सिंह के चुनाव के हारने के बाद माले के सांसद सुदामा प्रसाद ने तो आश्वासन तक नहीं दिया। जबकि राजद के शाहपुर विधायक राहुल तिवारी उर्फ मंटू तिवारी के तरफ से भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया है। इन्होंने ग्रामीणों को कहा था कि फंड नहीं आया है। आने के बाद उसपर विचार किया जाएगा। सरकार हमलोगों पर ध्यान नहीं देती मुखिया पति अनिल सिंह ने कहा कि सरकार हमलोग पर ध्यान नहीं देती है। गांव में आने के लिए कच्ची सड़क पर एक पुलिया है। उसी पुलिया से आते-जाते है। बरसात होने पर यह रास्ता बंद हो जाता है। उसके बाद गांव में आने जाने के लिए 15 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। 2 किलोमीटर तक सड़क बनवाने के लिए कई बार आवेदन दिया। कोई सुनवाई नहीं हुई है। भोजपुर DM तनय सुल्तानिया ने कहा, शाहपुर प्रखंड विकास पदाधिकारी शत्रुंजय कुमार सिंह और BPRO राजेश प्रसाद को निर्देश दिया गया है कि वहां की स्थिति को देखकर रिपोर्ट तैयार करें। इसके बाद गांव की समस्या को लेकर मुख्यालय को रिपोर्ट भेजा जाएगा।
‘2013 अप्रैल-मई का महीना होगा। चिलचिलाती गर्मी थी। दोपहर के वक्त घर में खबर आई कि संतोष (बड़े भइया) का UPSC क्लियर हो गया है। उनकी रैंक अच्छी है। IAS बन जाएंगे। ये वो सूचना थी और मेरे दिमाग में पहला रिएक्शन था कि मुझे भी ये करना है। उसी दिन हमने ठान लिया।’ सुबोध कुमार जब अपनी यह बातें शेयर कर रहे थे थो उनके हाव-भाव से लग रहा था कि वो पुराने दिन में लौट गए हैं। उन्होंने बहुत गर्व से उन सरकारी नौकरियां को भी गिनवाया, जो उन्होंने छोड़ दी थी। भास्कर की स्पेशल सीरीज ‘मैं हूं BPSC टॉपर’ में चौथी कहानी समस्तीपुर के सुबोध कुमार राय की। इस सीरीज में हम BPSC टॉपर्स की कहानी आपके साथ साझा कर रहे हैं। सुबोध ने 69th BPSC एग्जाम में 56वां रैंक हासिल किया है। अभी फाइनेंस डिपार्टमेंट में अफसर हैं। आगे की कहानी पढ़िए और देखिए...सुबोध की जुबानी... किसान परिवार में जन्मे सुबोध ने 4 सरकारी नौकरियां छोड़ दी। बड़े भाई संतोष कुमार दिल्ली में जिलाधिकारी (DM) हैं। पिता की ठीकठाक किसानी है, मगर सुबोध ने प्रारंभिक पढ़ाई अपने गांव से की। 8वीं तक तो गांव के सरकारी में पढ़े, जहां बैठने की व्यवस्था भी खुद करनी पड़ती थी। सुबोध बताते हैं, ‘मेरे घर में बड़े भाई पहले ही बाहर निकल चुके थे और तैयारी कर चुके थे। उनके संघर्ष को देखते हुए मुझे भी लगा कि जब ये कर सकते हैं तो मैं भी कर सकता हूं। इसलिए मैंने तैयारी शुरू कर दी। मगर ना तो सबकी किस्मत एक जैसी होती है और ना ही सब लोग IAS ही बन जाते हैं।’ भइया को UPSC क्रैक करते देख हमको लगने लगा कि मेरे लिए भी ये मुश्किल नहीं होगा। मैं भी कम से कम एक बार एग्जाम देने की सोचने लगा। फिर मैं दिल्ली गया और एक प्राइवेट कोचिंग ज्वाइन की। इसके बाद असली कहानी शुरू हुई। मेंस में बार-बार मिल रही थी असफलता चार बार UPSC मेंस की परीक्षा दी और हर बार इंटरव्यू से लौट आए। हमारे लिए यह सफलता के मुहाने पर से लौट आने जैसा था। वो कहते हैं, ‘जब आपका प्री भी नहीं निकलता है तो समझ में आता है कि चलो ठीक है। मगर हर दो साल पर आप मेंस की परीक्षा दे रहे हैं और हर बार इंटरव्यू से लौट आए तो मन टूट जाता है।’ कोविड के पहले तक सुबोध ने खूब परीक्षाएं दी, मगर सफलता नहीं मिली। मगर फिर एक साथ कई एग्जाम निकलते गए। हालांकि, UPSC का सपना पूरा नहीं हो सका। वह बताते हैं, ‘मैंने कपड़े की तरह नौकरियां बदलीं। CRPF कमांडेंट के पद तक को छू लिया, मगर मन में UPSC का मलाल था। फिर बड़े भाई ने समझाया कि UPSC ही आखिरी लड़ाई नहीं है। जीवन में हार जीत से जरूरी है कि सही जगह रहा जाए। फिर उनकी राय से मैंने BPSC देने की सोची।’ रिश्तेदार बड़े भाई से करते थे तुलना सुबोध कुमार को BPSC में सफलता तकरीबन 10 सालों की मेहनत के बाद मिली। इन्हीं 10 साल में रिश्तेदारों ने वो सबकुछ कहा, जिसे किसी भी पढ़ाई या तैयारी कर रहे इंसान से नहीं कहना चाहिए। सुबोध बताते हैं, ‘मेरे रिश्तेदार दबी जुबान कह जाते थे कि इतने दिन से बाहर रह रहा है। नौकरी भी नहीं हुई। अब तो शादी-ब्याह कर लिया होगा। इस बात को तो मैं हंस कर टाल जाता था, मगर कुछ समय बाद लोगों ने मेरी तुलना बड़े भाई से करनी शुरू कर दी। मुझे पहले तो समझ नहीं आता था कि कैसे रिएक्ट करूं, मगर फिर मैंने इस बात की चिंता ही छोड़ दी कि कौन क्या कह रहा है।’ सुबोध लगातार असफलताओं के बीच से निकलने के बाद अधिकारी बने हैं। उनके हावभाव में एक अधिकारी का तौर-तरीका साफ झलकता है, मगर वो तैयारी कर रहे बच्चों को लेकर बहुत आशान्वित हैं। वह कहते हैं, मैं चाहता हूं कि जो लोग तैयारी कर रहे हैं वो सफल हो चुके लोगों से संपर्क में रहें। मैंने यूट्यूब चैनल भी बनाया है, जहां मैं अपने काम के बीच में से समय निकाल कर बातें करता हूं। मुझे इस बात का बहुत एहसास है कि इस नौकरी की तैयारी करने वाले के मन में क्या चलता है। मेंस की तैयारी करने वालों के लिए 3 टिप्स 1. पहली रीडिंग के साथ बनाएं माइक्रो सिलेबस की लिस्ट जब आप पहली रीडिंग कर रहे हों, तो कोशिश करें की साथ-साथ में एक सब टॉपिक्स की लिस्ट बन सके। इसे ऐसे समझें - अगर कोई सब टॉपिक पेपर 1 से रिलेटेड है, लेकिन वो पेपर 2 में रिपीट हो रहा हो आपको ये समझना पड़ेगा कि दोनों पेपर के हिसाब से इस सवाल का जवाब किस तरह देंगे। ऐसे में खुद अपना माइक्रो-सिलेबस तैयार करें। 2. दूसरों से अलग आंसर लिखने के लिए वैल्यू एडिशन करें अपने आंसर को दूसरों से अलग बनाने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ कुछ खास पॉइंट्स ऐड करते जाएं। जैसे - PRS की वेबसाइट से अलग-अलग कमेटियों के रिकमेंडेशन नोट कर लें। कुछ किताबों से अच्छे कोट्स भी नोट कर सकते हैं। इन चीजों को इम्पॉर्टेंस के हिसाब से अलग-अलग कैटेगरी में बांट लें। इस तरह आप वैल्यू एडिशन कर सकते हैं। आपके आंसर में जितना तगड़ा और नया कंटेंट होगा, आपका स्कोर दूसरों से उतना अच्छा होगा। 3. कॉन्सेप्ट वाइज नोट्स तैयार करें नोट मेकिंग के लिए किसी एक सोर्स की मदद ले सकते हैं। ऐसे में नोट मेकिंग में आपका कम से कम समय लगेगा। इन नोट्स की मदद से खुद अपने माइक्रो नोट्स बनाएं। जब आपके पास एग्जाम से पहले 10 से 15 दिन का समय हो, तो इसकी मदद लें। हिस्ट्री की थ्योरी और पॉलिटिकल साइंस के अलग-अलग कॉन्सेप्ट्स के लिए अलग से नोट्स बनाएं। ---------------------- ये भी पढ़ें... ससुर ने पगली कहकर संपत्ति से बेदखल किया:पति बोले- बनना है तो अधिकारी बनो, 4 बार फेल हुई; नहीं मानी हार, BPSC टॉपर ज्योत्सना की कहानी ‘मेरी शादी 18 साल की उम्र में हो गई। 25 की होते-होते तीन बच्चों की मां बन गई। एक बेटी हुई और उसके 5 साल बाद दो जुड़वा बच्चे हो गए। 4 बार BPSC में बैठने के बाद सिलेक्शन हो सका, मगर ससुर और सास ने अभी तक घर में जगह नहीं दी है।’ पूरी खबर पढ़िए
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